विद्यापति भक्त कवि छथि वा श्रृगारिक कवि ?

 

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मैथिलीमे निंबध

ब्रिटिशकालमे नवीन स्वतंत्र साहित्यिक गद्य विधाक रुपमे निबंधक जन्म भेल। निबंध गद्यक अोहि विधाकेँ कहल जाइत अछि जाहिमे लेखक कोनो विषय पर स्वच्छन्दतापूर्वक मुदा एकटा विशेष सोषठव, सहिति, सजीवता एवं वैयक्तिकताक संग अपन भाव, विचार एवं अनुभवकेँ व्यक्त करैत छथि। निबंधक विकासमे पत्र-पत्रिकाक विशेष योगदान रहल। मैथिल हित साधन, मिथिला मोद, मिहिर सन पत्र-पत्रिका एकटा ठोस धरातल प्रदान कयल। एकर अतिरिक्त मैथिली अकादमी, चेतना समिति,साहित्य अकादमी अादि संस्थानक विशेष योगदान अछि। प० मुरलीधर झा, हरि नारायण झा, त्रिलोचन झा अादि एहि कालक उल्लेखनीय निंबधकार अछि। एहि कालमे समसामयिक विषय एवं समस्याकेँ प्राथमिकता प्रदान कयल गेल। निंबधक उद्देश्य नैतिक अार्दशक स्थापना, मातृभाषाक प्रसार, जातीय गौरवक ग्यान प्रसारण रहल।
स्वतंत्रताक बाद निंबधमे परिपुर्णता अा परिपक्वता देखल जाय सकैत अछि। स्वतंत्रताकपुर्वक अपेक्षा अालोच्यकालमे निबंधक कथ्य एवं शिल्पमे वस्तुतः महान परिवर्तन देखल जाइत अछि। निबंधक सम्पदाकेँ एना वर्गीकृत कयल जा सकैत अछि।
1. वर्णात्मक – वसन्तक आगमान (म०म० डाॅ० उमेश म्रिश्र)
2. विचारात्मक – मैथिली नाटक: दशा दिशा (सुधाशु शेखर चोधरी)
3.व्यक्तिगत – पृथ्वी ते पात्रं (यात्री)
4.लोक तात्विक – दीनाभद्री, सलहेस (मणिपद्म)
5.भावात्मक – अभिलाशा ( मनमोहन झा)
6.हास्य व्यंग्य प्रधान – खट्टर ककाक तरंग (हरिमोहन झा)
7.सामयिक – बंगलादेश अौ मैथिली कवि (डाॅ० दिनेश कुमार झा)

समाज, संस्कृति,धर्म, शिक्षा, साहित्य एवं राजनीति अादि समस्त विषय निबंधकार लोकनिक विवेचनाक क्षेत्र बनल आ मैथिली साहित्यवृद्धिमे सहायक भेल।

मैथिली मे उपन्यास

मैथिली साहित्य मे उपन्यासक विकासकेँ निम्न कालावधिमे देखल जा सकैत अछि।
आरम्भिक काल (1917 ई॰ – 1921 ई॰)

एहि कालमे उपन्यासक उद्देश्य समाज सुधार आ वैवाहिक समस्याक धरि संकेन्द्रित रहल। मुदा चारित्रिक चित्रण, विषयवस्तु, उद्देश्य, समन्वयक दृष्टिकोणसँ अपरिपक्व रहल। उपन्यास एकटा पैद्य कथा सन प्रतित होेएत अछि। एहि कालक जनारधन झा जनसीदनक “निर्दयी सासु” आ “शशीकला”, बिहारी लालदासक “सुमती” उल्लेखनीय अछि।

निर्माण काल (1922 ई० – 1932 ई०)

चरित्रचित्रण, शब्दविन्यास, विषयवस्तु अादिक दृष्टिकोणसँ उपन्यासमे परिपक्वता आ प्रवाहमयता आबि गेल। एहिकालक जनारधन झा जनसीदनक “पुनःविवाह” आ अनुप मिश्रक “नारद विवाह” प्रमुख उपन्यास अछि।

विकास काल (1933 ई० – 1950 ई०)

एहिकालमे मैथिलीक उपन्यास हिन्दी आ बांगलाक स्वर्णकालसँ स्पष्ट रुपसँ प्रभावित रहल। मैथिली उपन्यास पूर्णतः परिपक्वता प्राप्त करि लेल। हरिमोहन झाक “कन्यादान” आ यात्रीक “पारो” स्पष्ट प्रमाण अछि।

विस्तार काल (1951 ई० – 1990 ई०)

मैथिली उपन्यास हिन्दी, बांगला आ अंग्रजी संग प्रगतीवाद, समाजवाद, माअोवाद सन विचारधारासँ प्रभावित रहल। गांधी, टेगोर, फ्रायड,मोपसा आदिक स्पष्ट छाप मैथिली उपन्यासमे देखल जाय सकैत अछि। पुरानसभ बंधंन केँ तोडैत नव अायाम केँ प्राप्त कयल। मनोविश्लेष्णवाद, व्यक्तिवाद एहि कालक प्रमुखता अछि। ललितक “पृथ्वीपुत्र”, मणिपद्मक “लोरिक विजय” एकर उदाहरण अछि।

संक्रमण काल (1991 ई० – आय धरि)

इलेक्र्टानिक मिडियाक प्रभाव, पत्र – पत्रिकाक अभाव, प्रकाशन आ पाठकक अभाव, मैथिलीक अपेक्षा अग्रजी आ हिन्दीक प्रति मैथिलसभक दुराग्रहक कारण मैथिली उपन्यास संघर्षशील अछि। लीलीरेक “उपसंघार” उषाकिरण खाँक “हसीना मंजरी” एहि कालक उपन्यासक विशेष उदाहरण अछि।

मैथिली मे संस्मरण

स्मृतिक आधार पर कोनो विषय वा व्यक्ति पर लिखल आलेख संस्मरण कहाबैत अछि। लेखक ज‌‍ऽ देखैत अछि अनुभव करैत अछि तकर चित्रण करैत अछि।
संस्मरण एेतिहासिक आ साहित्यिक रूपसँ महत्वपूर्ण अछि। तत्कालिन समाजिक, धार्मिक,प्रशासनिक समसामयिक जीवन शैलीक विवरण भेटैछ। गिरीन्द्र मोहन मिश्रक “किछु देखल, किछु सुनल” मे मिथिलाक स्वतंत्रताक संग्राममे योगदान, मिथिला मिहिरक जन्म वा पुर्नजन्म, मिथिला परिषदक, राजदरभंगाक संचालनक विवरण भेटैछ। एहि कृतिकेँ भारत सरकार द्वारा साहित्य अकादमी पुरसकारसँ सम्मानित कएल गेल।
एहि विधामे मात्रात्मक दृष्टिसँ कम काज भेल मुदा स्तरक
दृष्टिकोणसँ उत्कृष्ट। मैथिली संस्मरणमे जे रचनाकार आ कृति उल्लेखनिय अछि से छथि – बद्रीनाथ झाक “अभिनंदन ग्रंथ”, रमानाथ झाक “अभिनंदन ग्रंथ”, यात्रीक “प्रवासीक संस्मरण”, हरिमोहन झाक “स्वर्गीय”, कुमारगंगानंद सिंहक “स्मृतिक अंक” आ जनारदन झा जनसीदनक “संस्मरण”।

अनुखन अनुखन माधव माधव सुमिरिते सुन्दरि भेल मधाई – Vidyapati

 

प्रस्तुत पद मैथिलीक महान कवी विद्यापति द्वारा लिखल गेल अछि । एहि मे महाभाव भाव के प्रकट कयल गेल अछि । महाभाव अर्थात जखन प्रेमी एक दूसरा के फराक नहि एके भुजेत अछि । अपने मे अपन प्रेमी के महसूस करैत अछि ।

“अनुखन अनुखन माधव माधव सुमिरिते
सुन्दरि भेल मधाई ।
ओ निज भाव सभावहि विसरल
आपन गुन लुबुधाई ।। ”

राधा बेर बेर माधव माधव बाजैत अछि । एतने बेर माधव बाजैत अछि कि ओ मधाई भ’ गेल अछि । अर्थात राधा कृष्णाक स्मरण क ‘ रहल अछि आ हुनक प्रेम मे व्यग्र अछि । ओ अपन स्वाभाव बिसरि गेल अछि आ कृष्णक गुण में लुब्ध अछि । अइसन प्रेम अछि कि अपन कोनो सुध बुध न अछि मुदा अपन प्रेमिक ज्ञान अछि ।

“माधव अपरूप तोहिरी सिनेह ।
अपने बिरह अपन तनु जर जर
जिबइते भेल संदेह ।। ”

माधव हे कृष्ण अहाँक प्रेम अपूर्व अछि । अहाँक प्रेम मे राधा अपन तन जर्जर करल जा रहल अछि । ओकर जीवन सेहो संदेहपूर्ण अछि । जखन कोनो प्रेमी प्रेम करत अछि त ‘ ओ अपन प्रेमिक विरह मे जर्जर भ ‘ जायत अछि । जिबैत अछि कि मृत्यु के प्राप्त करि ई प्रश्नचिन्ह अछि ।

“भोरहि सहचरि कातर दिठी हेरि ।
छल छल लोचन पानि
अनुखन राधा राधा रट इत
आधा आधा कहु बानि ।। ”

भोर होयत अछि त ‘ सखी सभ राधाक आखि मे अश्रु देखैत अछि । जखन प्रेमी स ‘ विरह होयत अछि त ‘ भोर भेला सभसँ प्रथम प्रेमी स्मरण होयत अछि आ ओकर विरह मे अनायास अश्रु प्रकट होयत अछि । एहि स्थान आब राधा, राधा राधा रटैत अछि । अर्थात राधा आब अपने के कृष्ण बुझेत अछि । जखन ओ कृष्ण भ ‘ गेल अछि त ‘ ओ आब राधाक विरह मे अछि । एखेन बेर राधा राधा बाजैत अछि कि आधा आधा प्रतीत होयत अछि ।

“राधा सय जब पुनतहि माधव
माधव सय जब राधा ।
दारुन प्रेम तबहि नहि टूटत
बाढ़त विरहक बाधा ॥ ”

राधा स ‘ औ कृष्ण बनैत अछि त ‘ ओ पुनः कृष्ण स ‘ राधा । अर्थात जखन ओ राधा अछि त ‘ ओ कृष्णक विरह मे अछि । ओ फेर एतने मधाई भ ‘ जायत अछि कि ओ अपने के कृष्णा भुझे त अछि । जखन ओ कृष्णा भ ‘ जायत अछि त ‘ ओ राधाक विरह करैत अछि । एहि प्रकार कखनो ओ कृष्णा भ ‘ जायत अछि त ‘ कखनो राधा । अइसन कष्टकारी प्रेम अछि जे टूटत नहि अछि ।

“दुहु दिशे दाहुरने जैसे दग धइ
आकुल कीट परान ।
ऐसन बल्लभ हेरि सुधामुखी
कवी विद्यापति भान ॥ ”

जखन लकड़ीक दुनु ओर अग्नि लागल होए आ एहि लकड़ी पर कोनो कीट होये त ‘ जे स्थिति कीटक होयब तखन स्थिति राधाक अछि । हे राधा अइसन कृष्णक प्रेम अछि । अइसन विद्यापति कहैत अछि । एहि स्थान पर उपमा अलंकारक सुन्दर उपयोग सेहो देखल जा सकैत अछि ।

 

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