विद्यापाति आ गोविन्द दासक कविक रुपमे तुलना

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सीवील परिक्षा निकट अछि त’ समयावधिक कारण टाइप नहि करि पाय रहल अछि। मुदा समय पर अपडेट करब अति आवश्यक त’ हस्तलिखित प्रति अपलोड करैत अछि।

विद्यापति भक्त कवि छथि वा श्रृगारिक कवि ?

 

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सीवील परिक्षा निकट अछि त’ समयावधिक कारण टाइप नहि करि पाय रहल अछि। मुदा समय पर अपडेट करब अति आवश्यक त’ हस्तलिखित प्रति अपलोड करैत अछि।

अनुखन अनुखन माधव माधव सुमिरिते सुन्दरि भेल मधाई – Vidyapati

 

प्रस्तुत पद मैथिलीक महान कवी विद्यापति द्वारा लिखल गेल अछि । एहि मे महाभाव भाव के प्रकट कयल गेल अछि । महाभाव अर्थात जखन प्रेमी एक दूसरा के फराक नहि एके भुजेत अछि । अपने मे अपन प्रेमी के महसूस करैत अछि ।

“अनुखन अनुखन माधव माधव सुमिरिते
सुन्दरि भेल मधाई ।
ओ निज भाव सभावहि विसरल
आपन गुन लुबुधाई ।। ”

राधा बेर बेर माधव माधव बाजैत अछि । एतने बेर माधव बाजैत अछि कि ओ मधाई भ’ गेल अछि । अर्थात राधा कृष्णाक स्मरण क ‘ रहल अछि आ हुनक प्रेम मे व्यग्र अछि । ओ अपन स्वाभाव बिसरि गेल अछि आ कृष्णक गुण में लुब्ध अछि । अइसन प्रेम अछि कि अपन कोनो सुध बुध न अछि मुदा अपन प्रेमिक ज्ञान अछि ।

“माधव अपरूप तोहिरी सिनेह ।
अपने बिरह अपन तनु जर जर
जिबइते भेल संदेह ।। ”

माधव हे कृष्ण अहाँक प्रेम अपूर्व अछि । अहाँक प्रेम मे राधा अपन तन जर्जर करल जा रहल अछि । ओकर जीवन सेहो संदेहपूर्ण अछि । जखन कोनो प्रेमी प्रेम करत अछि त ‘ ओ अपन प्रेमिक विरह मे जर्जर भ ‘ जायत अछि । जिबैत अछि कि मृत्यु के प्राप्त करि ई प्रश्नचिन्ह अछि ।

“भोरहि सहचरि कातर दिठी हेरि ।
छल छल लोचन पानि
अनुखन राधा राधा रट इत
आधा आधा कहु बानि ।। ”

भोर होयत अछि त ‘ सखी सभ राधाक आखि मे अश्रु देखैत अछि । जखन प्रेमी स ‘ विरह होयत अछि त ‘ भोर भेला सभसँ प्रथम प्रेमी स्मरण होयत अछि आ ओकर विरह मे अनायास अश्रु प्रकट होयत अछि । एहि स्थान आब राधा, राधा राधा रटैत अछि । अर्थात राधा आब अपने के कृष्ण बुझेत अछि । जखन ओ कृष्ण भ ‘ गेल अछि त ‘ ओ आब राधाक विरह मे अछि । एखेन बेर राधा राधा बाजैत अछि कि आधा आधा प्रतीत होयत अछि ।

“राधा सय जब पुनतहि माधव
माधव सय जब राधा ।
दारुन प्रेम तबहि नहि टूटत
बाढ़त विरहक बाधा ॥ ”

राधा स ‘ औ कृष्ण बनैत अछि त ‘ ओ पुनः कृष्ण स ‘ राधा । अर्थात जखन ओ राधा अछि त ‘ ओ कृष्णक विरह मे अछि । ओ फेर एतने मधाई भ ‘ जायत अछि कि ओ अपने के कृष्णा भुझे त अछि । जखन ओ कृष्णा भ ‘ जायत अछि त ‘ ओ राधाक विरह करैत अछि । एहि प्रकार कखनो ओ कृष्णा भ ‘ जायत अछि त ‘ कखनो राधा । अइसन कष्टकारी प्रेम अछि जे टूटत नहि अछि ।

“दुहु दिशे दाहुरने जैसे दग धइ
आकुल कीट परान ।
ऐसन बल्लभ हेरि सुधामुखी
कवी विद्यापति भान ॥ ”

जखन लकड़ीक दुनु ओर अग्नि लागल होए आ एहि लकड़ी पर कोनो कीट होये त ‘ जे स्थिति कीटक होयब तखन स्थिति राधाक अछि । हे राधा अइसन कृष्णक प्रेम अछि । अइसन विद्यापति कहैत अछि । एहि स्थान पर उपमा अलंकारक सुन्दर उपयोग सेहो देखल जा सकैत अछि ।

 

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