अनुखन अनुखन माधव माधव सुमिरिते सुन्दरि भेल मधाई – Vidyapati

 

प्रस्तुत पद मैथिलीक महान कवी विद्यापति द्वारा लिखल गेल अछि । एहि मे महाभाव भाव के प्रकट कयल गेल अछि । महाभाव अर्थात जखन प्रेमी एक दूसरा के फराक नहि एके भुजेत अछि । अपने मे अपन प्रेमी के महसूस करैत अछि ।

“अनुखन अनुखन माधव माधव सुमिरिते
सुन्दरि भेल मधाई ।
ओ निज भाव सभावहि विसरल
आपन गुन लुबुधाई ।। ”

राधा बेर बेर माधव माधव बाजैत अछि । एतने बेर माधव बाजैत अछि कि ओ मधाई भ’ गेल अछि । अर्थात राधा कृष्णाक स्मरण क ‘ रहल अछि आ हुनक प्रेम मे व्यग्र अछि । ओ अपन स्वाभाव बिसरि गेल अछि आ कृष्णक गुण में लुब्ध अछि । अइसन प्रेम अछि कि अपन कोनो सुध बुध न अछि मुदा अपन प्रेमिक ज्ञान अछि ।

“माधव अपरूप तोहिरी सिनेह ।
अपने बिरह अपन तनु जर जर
जिबइते भेल संदेह ।। ”

माधव हे कृष्ण अहाँक प्रेम अपूर्व अछि । अहाँक प्रेम मे राधा अपन तन जर्जर करल जा रहल अछि । ओकर जीवन सेहो संदेहपूर्ण अछि । जखन कोनो प्रेमी प्रेम करत अछि त ‘ ओ अपन प्रेमिक विरह मे जर्जर भ ‘ जायत अछि । जिबैत अछि कि मृत्यु के प्राप्त करि ई प्रश्नचिन्ह अछि ।

“भोरहि सहचरि कातर दिठी हेरि ।
छल छल लोचन पानि
अनुखन राधा राधा रट इत
आधा आधा कहु बानि ।। ”

भोर होयत अछि त ‘ सखी सभ राधाक आखि मे अश्रु देखैत अछि । जखन प्रेमी स ‘ विरह होयत अछि त ‘ भोर भेला सभसँ प्रथम प्रेमी स्मरण होयत अछि आ ओकर विरह मे अनायास अश्रु प्रकट होयत अछि । एहि स्थान आब राधा, राधा राधा रटैत अछि । अर्थात राधा आब अपने के कृष्ण बुझेत अछि । जखन ओ कृष्ण भ ‘ गेल अछि त ‘ ओ आब राधाक विरह मे अछि । एखेन बेर राधा राधा बाजैत अछि कि आधा आधा प्रतीत होयत अछि ।

“राधा सय जब पुनतहि माधव
माधव सय जब राधा ।
दारुन प्रेम तबहि नहि टूटत
बाढ़त विरहक बाधा ॥ ”

राधा स ‘ औ कृष्ण बनैत अछि त ‘ ओ पुनः कृष्ण स ‘ राधा । अर्थात जखन ओ राधा अछि त ‘ ओ कृष्णक विरह मे अछि । ओ फेर एतने मधाई भ ‘ जायत अछि कि ओ अपने के कृष्णा भुझे त अछि । जखन ओ कृष्णा भ ‘ जायत अछि त ‘ ओ राधाक विरह करैत अछि । एहि प्रकार कखनो ओ कृष्णा भ ‘ जायत अछि त ‘ कखनो राधा । अइसन कष्टकारी प्रेम अछि जे टूटत नहि अछि ।

“दुहु दिशे दाहुरने जैसे दग धइ
आकुल कीट परान ।
ऐसन बल्लभ हेरि सुधामुखी
कवी विद्यापति भान ॥ ”

जखन लकड़ीक दुनु ओर अग्नि लागल होए आ एहि लकड़ी पर कोनो कीट होये त ‘ जे स्थिति कीटक होयब तखन स्थिति राधाक अछि । हे राधा अइसन कृष्णक प्रेम अछि । अइसन विद्यापति कहैत अछि । एहि स्थान पर उपमा अलंकारक सुन्दर उपयोग सेहो देखल जा सकैत अछि ।

 

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